मुक्तक
१.
का देख रहे हो…?
हंसी नही देखे हो का…?
अरे हमरे बत्तीसी से अंधेरे में अजोर हो जाता है
बिना दिया फटाका भी दीवाली बेजोड़ हो जाता है !
…सिद्धार्थ
२.
अंधेरे के बाजार में कुछ क़तरा रौशनी बेच रही हूँ
गम के दरबार में मुस्कान से सलामी ठोक रही हूँ ।
…सिद्धार्थ