मुक्तक
१.
कभी मैं भी हरा-भरा था साहेब, आज ठूंठ हो गया हूँ
जंजीरों में उग आये कुकुरमुत्ते के लिए झूठ हो गया हूँ ।
…सिद्धार्थ
२.
दाग़ फलक के चांद में होगा, मेरा चांद तो बेदाग है
वस्ल मयस्सर नही तो क्या वो फिर भी जां निसार है।
…सिद्धार्थ
१.
कभी मैं भी हरा-भरा था साहेब, आज ठूंठ हो गया हूँ
जंजीरों में उग आये कुकुरमुत्ते के लिए झूठ हो गया हूँ ।
…सिद्धार्थ
२.
दाग़ फलक के चांद में होगा, मेरा चांद तो बेदाग है
वस्ल मयस्सर नही तो क्या वो फिर भी जां निसार है।
…सिद्धार्थ