मुक्तक
है बहुत घना अंधेरा, शब भी निशब्द है मगर
जिद पे जुगनू आजाये तो अंधेरा कहां टिक पायेगा।
रात की औकात क्या अंधेरे में भी वो बात कहां
ढलता है सूरज अगर तो, ये रात भी ढल जायेगी।
जब मेहनत करने वाले हांथों में लाल झंडा आएगा
इंकलाब के जोर पे ही नया सवेरा उतारा जायेगा।
…सिद्धार्थ