मुक्तक
बंट रहे थे पर्चे जो होता है सब उसकी मर्ज़ी है
बिना फेर बदल ,इसे ऐसे ही बस माना जाये
हम गिर पड़े हैं चलते-चलते चोट खाकर
क्या इसको भी उसकी ही रज़ा मान जाये।
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…सिद्धार्थ
२.
जिंदगी की जिंदगी से जंग अब तक जारी है
जितने भी हमें हथियार मिले सब दुधारी है !
…सिद्धार्थ
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वो सब पे हंसती है औरों को हंसाती है
अंदर से मगर वो तन्हा ही रह जाती है !
…सिद्धार्थ