मुक्तक
जुस्तुजू उसकी करके भी ख़ाके मुहब्बत ही उड़ाया मैंने
दीद की बस आरज़ू ही रही, चैन भी तो गवाया मैंने !
बस एक तेरी दीद की रही आरजू दिल में तन्हा जिन्दा
इस इक शौक के सिबा सब कुछ तो औरों पे लुटाया मैंने
…पुर्दिल
जुस्तुजू उसकी करके भी ख़ाके मुहब्बत ही उड़ाया मैंने
दीद की बस आरज़ू ही रही, चैन भी तो गवाया मैंने !
बस एक तेरी दीद की रही आरजू दिल में तन्हा जिन्दा
इस इक शौक के सिबा सब कुछ तो औरों पे लुटाया मैंने
…पुर्दिल