मुक्तक
१.
जिसकी पंखुड़ियों को न खिलने की सज़ा मिली हो
यार वो फूल खुशबू कहां तक लुटाए जमाने में…
… सिद्धार्थ
२.
तुम पंख क्यों नहीं देते अपना परवाज करना है
इस समर काल में इंकलाब का आगाज करना है
…सिद्धार्थ
३.
मंदिरों के अहाते में जो सूखा सा हाँथ लहराता है
कहो ‘भाई’ क्या उसके लिए बिरुद्ध बिधाता है
गर ऐसा नही तो क्यूँ भला उस चौखट पे हरदम
भूखे- नंगोँ का लगा रहता यूँ ही तांता है…?
…सिद्धार्थ