मुक्तक
कहीं फूलों से डरते हैं कहीं खारों से डरते हैं,
मुखौटे मे छिपे सारे ही किरदारों से डरते हैं,
धर्म की आंच पे जो रोटियां सेंके सियासत की
ये सच है यार हम तो उन अदाकारों से डरते हैं…
कहीं फूलों से डरते हैं कहीं खारों से डरते हैं,
मुखौटे मे छिपे सारे ही किरदारों से डरते हैं,
धर्म की आंच पे जो रोटियां सेंके सियासत की
ये सच है यार हम तो उन अदाकारों से डरते हैं…