मुक्तक
सूखी जमीं पर मेघों को गरजते देखा
समंदर में जाकर उन्हें बरसते देखा,
मेरे शहर में झुग्गी-झोपडी की कमी नहीं
जहाँ बचपन को हर चीज पर तरसते देखा।
अनिल कुमार मिश्र।
सूखी जमीं पर मेघों को गरजते देखा
समंदर में जाकर उन्हें बरसते देखा,
मेरे शहर में झुग्गी-झोपडी की कमी नहीं
जहाँ बचपन को हर चीज पर तरसते देखा।
अनिल कुमार मिश्र।