मुक्तक
होता है सब का फितूर जुदा-जुदा
किसी को बूत में किसी को आयतों में दिखे ख़ुदा।
हमारी बात औरों से बिकुल है जुदा-जुदा
हँसते खिलखिलाते बच्चों में दिखे ख़ुदा कुछ जुदा-जुदा !
…सिद्धार्थ …
जो कलम अमीरों की चौखट पे जा के ठहरी है
घसीटो उसे अब ग़रीबों के दलानों तक ले चलो
बात सिर्फ दर्द की होती तो कोई बात न थी
भूख और मौत चक्की दे दो पाट हुए हैं
उन पाटों को पाटो और वहां तक ले चलो
भूखे बच्चों के सिकुड़ते पेट की आतों तक ले चलो !
… सिद्धार्थ …