मुक्तक
आंखों के कोर से उतर कर
कलम के छोड़ पे बैठ जाते हो
तुम बड़े बेकार हो पुर्दिल
कभी आँसू तो कभी स्याही बन जाते हो
…सिद्धार्थ
जिंदगी मुझे बदलने की तरकीबें सोचती रही
हमने छुट्टा देकर छुट्टा कर दिया
जो चीज अपनी है पराई करने से साफ मना दिया !
…सिद्धार्थ
कहीं ताखे पे रख दिया हो, जैसे यादों के मेरी
तभी तो एक बार सखी कह के बुलाते नही हो !
…सिद्धार्थ