मुक्तक
1.
तू और तेरी ये मुस्कान, समंदर सी लगती है हमें
नदी होकर तुझ में हर बार ही समा जाती हूँ मैं
बेटियां कहीं भी चहके बस अपनी सी लगती है हमें !
…सिद्धार्थ
२.
लब को अपने मूक होने की सज़ा दी है
आँखों पे बस नही
बोल उठे कुछ तो नाराज मत होना !
…सिद्धार्थ
३.
रोज निकल आती है कुछ जिंदगी, गस्त लगाने को शहर के सीने पे
भूख दावानल होकर जब भी जलाती है, जिंदगी के बेरहम जीने पे !
…सिद्धार्थ