मुक्तक
१.
मैंने, ख़्याबों को
कभी अलबिदा कहा ही नही
क्यूँ कहूँ
आँखे हैं, हक है उसका
/
ये अलग बात…
कुछ पुरे हुए
कुछ टूट कर
बिखर गए…
…सिद्धार्थ
२.
मैंने रात को रोके रखा है जाने कब से,
एक तेरे दीदार भर की उम्मीदी में
तुम आओगे क्या…? या की
रेजगारी देकर छुट्टा कर दूँ नाउम्मीदी में !
…सिद्धार्थ