मुक्तक
रंगती रही वो गैरों की दीवारों को निस दिन
औलाद के आँसू कर के नजरअंदाज पलछिन
बेरंग ही रही वो देहारी न मिली जिस दिन !
…सिद्धार्थ
रंगती रही वो गैरों की दीवारों को निस दिन
औलाद के आँसू कर के नजरअंदाज पलछिन
बेरंग ही रही वो देहारी न मिली जिस दिन !
…सिद्धार्थ