मुक्तक
सारे दिन की थकन मैं तुझ पे ही उतार आती हूँ,
तेरे खत में पलते शब्द को जब जरा सा निहार आती हूँ
जब भी तेरी याद, याद बन सताती मुझको तोड़ जाती है
मैं तेरे लिखे शब्द को कोने से पकड़ कर फाड़ आती हूँ।
मैं भूल कर भी कभी तुझको भूले से भी भुला नही पाती हूँ
कोशिस जितनी तेज करती हूँ उतना तुझे नजदीक पाती हूँ !
.. सिद्धार्थ