मुक्तक
आप ज़बसे ज़िन्दग़ी में मिल गये हैं।
रास्ते मंज़िल के फ़िर से ख़िल गये हैं।
ज़ाग़े हुए से ख़्वाब हैं निग़ाहों में-
ज़ख़्म भी जिग़र के जैसे सिल गये हैं।
मुक्तककार- #मिथिलेश_राय
आप ज़बसे ज़िन्दग़ी में मिल गये हैं।
रास्ते मंज़िल के फ़िर से ख़िल गये हैं।
ज़ाग़े हुए से ख़्वाब हैं निग़ाहों में-
ज़ख़्म भी जिग़र के जैसे सिल गये हैं।
मुक्तककार- #मिथिलेश_राय