मुक्तक
एक किताब से दूसरे तक जाते-जाते नट सी हो जाती हूँ मैं
अल्फ़ाजों के भँवर में कभी-कभी उलट पलट हो जाती हूँ मैं !
…सिद्धार्थ
दोस्तों के दोस्त हैं ये, भुलाये भला किस तरह से जायेंगे
हकोहकूक कि बात चली तो जेहन के फ़लक पर इतरायेंगे !
**…सिद्धार्थ
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शिप के अंदर बैठी मोती को दूर से कौन देख पाया
मन के अंदर के दर्द का थाह दूजा कौन लगा पाया है !
…सिद्धार्थ