मुक्तक
अबकी राख से आग होने का सोचा है,
ये न कर, मुझ से मेरी औकात न पूछ ।
माँ बहनों की आन-मान के लिए,
ताव देख मेरी, देख न मेरी मूछ!!
***…सिद्धार्थ
अबकी राख से आग होने का सोचा है,
ये न कर, मुझ से मेरी औकात न पूछ ।
माँ बहनों की आन-मान के लिए,
ताव देख मेरी, देख न मेरी मूछ!!
***…सिद्धार्थ