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3 Aug 2019 · 1 min read

मुक्तक

१.
मुन्सिफ़ हुए थे वो, हम आवाम की आवाज ठहरे
सच को सज़ा भी हुई थी, लगाए गए थे खूब पहरे।
न हम रुके, न ही खरीदे गए न गालियों से ही हुए दोहरे
अब सच के आवाज से दुनिया में पुरस्कार के है झंडे फहरे !
…सिद्धार्थ
***
२.
जब भी सच की बात चलेगी, याद तुम्हारी भी आएगी
झूठे-मक्कारों के दौर में साथी
नाम तुम्हारा दीपशिखा बन राह हमें भी दिखलायेगी !
…सिद्धार्थ

Language: Hindi
1 Like · 327 Views
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