मुक्तक
१.
मुन्सिफ़ हुए थे वो, हम आवाम की आवाज ठहरे
सच को सज़ा भी हुई थी, लगाए गए थे खूब पहरे।
न हम रुके, न ही खरीदे गए न गालियों से ही हुए दोहरे
अब सच के आवाज से दुनिया में पुरस्कार के है झंडे फहरे !
…सिद्धार्थ
***
२.
जब भी सच की बात चलेगी, याद तुम्हारी भी आएगी
झूठे-मक्कारों के दौर में साथी
नाम तुम्हारा दीपशिखा बन राह हमें भी दिखलायेगी !
…सिद्धार्थ