मुक्तक
यकीनन ज़ख्म हमको सब पुराने याद रहते हैं,
बुरे वक्त और अपनों के ताने याद रहते हैं,
कोई भी पल मुहब्बत का भले ही याद न रहता
करिश्मा है कि नफ़रत के ज़माने याद रहते हैं,
यकीनन ज़ख्म हमको सब पुराने याद रहते हैं,
बुरे वक्त और अपनों के ताने याद रहते हैं,
कोई भी पल मुहब्बत का भले ही याद न रहता
करिश्मा है कि नफ़रत के ज़माने याद रहते हैं,