मुक्तक
मरीज़-ए-इश्क हूँ बेकरार और बेज़ार हूँ
अपने यार से मिलने की बस तलबग़ार हूँ !
**
हर रात मेरे तकिए पे करवट बदलते मिलते हो मुझे
हर सुबह पहली अंगड़ाई में लिपटे दीखते हो मुझे
बस नमक़ बराबर इश्क़ सा ही हर रोज लगते हो मुझे !
पुर्दिल
मरीज़-ए-इश्क हूँ बेकरार और बेज़ार हूँ
अपने यार से मिलने की बस तलबग़ार हूँ !
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हर रात मेरे तकिए पे करवट बदलते मिलते हो मुझे
हर सुबह पहली अंगड़ाई में लिपटे दीखते हो मुझे
बस नमक़ बराबर इश्क़ सा ही हर रोज लगते हो मुझे !
पुर्दिल