मुक्तक !
हटो व्योम के बादल तुम, प्रीतम से मिलने हम जाते हैं
बर्फीली वादी में प्यार की उष्णता लेकर हम जाते है,
शरहद के ठंढी सीमा में,ठिठुरते हांथो को ताप दे आते हैं।
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छटेगा ना अब ये बादल ‘सखे’ मौसम का तुम सुध ना लो
घनी अंधेरी रात बिकल, निर्जन क्रुद्ध भाव जीवन सुन लो
प्रीतम का बैरी शरहद है, शरहद का बैरी प्रीतम तुम गुन लो
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19-05-2019
…पुर्दिल…