मुक्तक !
मुर्दों की बस्ती में कुछ जिन्दा लोगों को देखा
मैंने मुर्दा होकर भी तुमको यारा ज़िंदा देखा।
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ख़ाहिश है देश के काम मैं भी आऊं
लड़की हूँ पर आसमान तक जाऊं मैं।
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देख जरा आँखें भर के, मैं तेरा ही कुनबे का हिस्सा हूँ
रौंदी गई फिर खड़ी हुई अब तुझ से बेहतर किस्सा हूँ ।
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19-05-2019
…सिद्धार्थ…