मुक्तक
चांदनी रात के साए में,
यादों के पिटारे खुलते हैं,
उमड़ते हैं बवंडर एहसासों के,
फिर रात के आंसू निकलते हैं…!!
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जब सो जाते हैं सब बेफिक्र,
दिल में उठती है फिर उनकी जिक्र,
कैसे होंगे वो जब ये सोचते हैं,
फिर रात के आंसू निकलते हैं…!!
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जो अक्स बनाई थी तूने आंखो में मेरी,
लहू बनके रगों में उतर गए थे तुम,
जब आइना दिखाया तेरी shaksiyat को,
क्या हुआ जो आइने से डर गए हो तुम…!!
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चांदनी रात और इस तन्हाई में,
शीतल हवा और मौसम की बेवफ़ाई में,
आंख के आंसू और सिगरेट के धुएं,
दोनों साथ निभाते हैं पूरी रात…!!
….राणा….