मुक्तक
प्रेम का सूर्य फिर से उगेगा यहाँ
धुँध घृणा का इक दिन छँटेगा यहाँ
एक दीपक जो मिल कर जला दें सभी
ये अँधेरा न हरगिज़ रहेगा यहाँ
प्रीतम राठौर भिनगाई
प्रेम का सूर्य फिर से उगेगा यहाँ
धुँध घृणा का इक दिन छँटेगा यहाँ
एक दीपक जो मिल कर जला दें सभी
ये अँधेरा न हरगिज़ रहेगा यहाँ
प्रीतम राठौर भिनगाई