मुक्तक
जारी है मेरा सफर धीरे-धीरे,
खोलूँगी ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे,
जहाँ पहुँचे हैं सब छ्लांगे लगाकर,
पहुँचुंगी मै भी मगर धीरे-धीरे
जारी है मेरा सफर धीरे-धीरे,
खोलूँगी ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे,
जहाँ पहुँचे हैं सब छ्लांगे लगाकर,
पहुँचुंगी मै भी मगर धीरे-धीरे