मुक्तक
मज़हब की चिंगारी को अंगार बना कर रखते हैं,
जाति,धर्म को कुछ इंसा व्यापार बना कर रखते हैं,
सत्ता की कश्ती उनकी मझदार में आकर उलझे तो
भोली भाली जनता को पतवार बना कर रखते हैं,,
मज़हब की चिंगारी को अंगार बना कर रखते हैं,
जाति,धर्म को कुछ इंसा व्यापार बना कर रखते हैं,
सत्ता की कश्ती उनकी मझदार में आकर उलझे तो
भोली भाली जनता को पतवार बना कर रखते हैं,,