मुक्तक
#विधा – ताटंक छंद आधारित (मुक्तक)
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व्यथित हृदय की पीर अभी हम, बोलो भला दिखाये क्यों।
जनता भोली मौन पड़ी है, गूंगों को समझायें क्यों।
जो होता है हो जाने दो, धार तैल देखे जाओ-
अगर किसी को फर्क न पड़ता, अश्रु धार बहाये क्यों।।
झूठे वादों की भट्टी पर, सेंक रहे रोटी सारे।
भोली जनता फसेगी कैसे, फेंक रहे बोटी सारे।
फसल फरेबी आज लगाकर, पँच वर्ष काटे कैसे-
इसी जुगत में पहर दुपहरी, बैढायें गोटी सारे।।
******* स्वरचित, स्वप्रमाणित
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार