मुक्तक
इस राज़ को क्या जानें साहिल के तमाशाई
हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई
ये जुल्म भी देखा है इतिहास की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
इस राज़ को क्या जानें साहिल के तमाशाई
हम डूब के समझे हैं दरिया तेरी गहराई
ये जुल्म भी देखा है इतिहास की नज़रों ने
लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई