मुक्तक
” लेखनी, डरना नहीं तू मौत की ललकार से,
क्रान्ति लानी है तुझे अपनी नुकीली धार से,
जीत पायेंगे वो कैसे ज़िन्दगी की जंग को
हार बैठे हौसला जो इक ज़रा-सी हार से “
” लेखनी, डरना नहीं तू मौत की ललकार से,
क्रान्ति लानी है तुझे अपनी नुकीली धार से,
जीत पायेंगे वो कैसे ज़िन्दगी की जंग को
हार बैठे हौसला जो इक ज़रा-सी हार से “