मुक्तक !
आज की औरत हूँ, आज़ाद होना है
उड़ती हवा हूँ माहताब होना है।
हवाओं के पर पे सबार होना है,
उड़ने-खुलने के लिए तैयार होना है।
तेरी झूठी रिवायतों कि दबिश से निकल
अस्तित्व को अपने अंगीकार करना है।
बांधे न कोई मुझे नदी की धार होना है
खुल कर अभी तो ख़ुद में साकार होना है !
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।।सिद्धार्थ।।