मुक्तक
” निज भावों को लिख देती हूँ, जब सुनती हूँ लोगों की बात,
मन व्यथित मेरा हो जाता है , जब अपने मुझसे करते घात,
लेखन में ही जीवन बसता , लेखन में बसते मेरे प्राण,
कलम हमारी मैदाने जंग , झेल रही नित दिन शह – मात “
” निज भावों को लिख देती हूँ, जब सुनती हूँ लोगों की बात,
मन व्यथित मेरा हो जाता है , जब अपने मुझसे करते घात,
लेखन में ही जीवन बसता , लेखन में बसते मेरे प्राण,
कलम हमारी मैदाने जंग , झेल रही नित दिन शह – मात “