मुक्तक
[2/7, 12:14] rajniagrawal60: हवा ने जिस्म की खुशबू भरा संदेश पहुँचाया।
अधर पर इश्क का चुंबन लिए पैगाम जब आया।
शबनमी प्रीत की सौगात भेजी तब गुलाबों में-
महकती वादियों के बीच हमने आपको पाया।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
[2/7, 17:43] rajniagrawal60: सजाके ख्वाब की महफ़िल तमन्ना जागती हरदम।
तसव्वुर की उड़ानें भर मुँडेरे झाँकती हरदम।
दरीचे आँख के खोले करे गुलज़ार रातों को-
सनम को सामने पाकर निगाहें ढ़ाँपती हरदम।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर