मुक्तक
भुलाकर प्यार दीवाने मुहब्बत कर रहे जर से ।
सलीका भूल जीने का जहाँ में मर रहे डर से ।
निकलकर घोंसलों से सब यहाँ मायूस लगते क्यों–
उड़ानें भर रहे देखो परिंदे अब बिना पर से ।।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०