मुक्तक
खुदाया तूने उसको क्यों बड़ा संगदिल बनाया है।
चक्षु को नीला और उसका बदन शीशा बनाया है।
मुहबत में ये हसरत थी कि उसको आँखों से छू लूँ ।
रब्बा तू ने उसे सूरज , मुझे जुगनू बनाया है।
खुदाया तूने उसको क्यों बड़ा संगदिल बनाया है।
चक्षु को नीला और उसका बदन शीशा बनाया है।
मुहबत में ये हसरत थी कि उसको आँखों से छू लूँ ।
रब्बा तू ने उसे सूरज , मुझे जुगनू बनाया है।