मुक्तक
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रंग नूर चेहरे का आज उड़ा उड़ा क्यों है
मेरी किस बात पर प्रिय तू खफा क्यों है
बिना तू झिझक,शर्म के निसंकोच होकर
तनिक मुझे तो ये बता मेरी खता क्या है
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जब से तुम मिले नीरस जीवन संवर गया
दीप प्रेम का प्यारा जीवन में जल गया
ना शिकवा ना कोई शिकायत जमाने से
खेत विरान बंजर प्रेम फसल ऊपज गया
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आने पर हो रोशनी ,जाने पर छाए अंधेरा
दिल बाग बाग हो,जब हो दीदार जब तेरा
आदत हो गई तेरी मधु मदिरा सी मुझ पर
तुम जो हो साकी तो जीवन मयखाना मेरा
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खुदा की रहमत देखो मेरे महबूब तुम हो
बलां की खूबसूरत हो, मेरे मगरूर तुम हो
गंगा सी पाक शालीन हम काशी नहा लिए
सुखविंद्र खुशनसीब,सहारा जो बने हो तुम
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली( (कैथल)