मुक्तक
” हर बातें चुभती हैं अब तो ख़ारों की तरह,
अब दूरियां बढ गयी हैं किनारों की तरह,
पढ़ चुका चाहे हज़ारों ही किताबें इंसां
सुलूक आज भी करता है गंवारों की तरह”
” हर बातें चुभती हैं अब तो ख़ारों की तरह,
अब दूरियां बढ गयी हैं किनारों की तरह,
पढ़ चुका चाहे हज़ारों ही किताबें इंसां
सुलूक आज भी करता है गंवारों की तरह”