मुक्तक
ख़ुद से ख़ुद में ही उलझी है हमारी जिंदगी,
दीखती आज़ाद लेकिन कैद-सी है ज़िन्दगी,
कश्मकश के जाल में हर शख़्स है उलझा हुआ
दायरों ही दायरों में घूमती है ज़िन्दगी “
ख़ुद से ख़ुद में ही उलझी है हमारी जिंदगी,
दीखती आज़ाद लेकिन कैद-सी है ज़िन्दगी,
कश्मकश के जाल में हर शख़्स है उलझा हुआ
दायरों ही दायरों में घूमती है ज़िन्दगी “