ये ज़िन्दगी
आँखों में हैं नींदें मग़र पलकों पर हैं ख़्वाब
कम्बख़्त सोना भी चाहें ग़र सोया ना जाए
ये कैसा चला हम पर ज़िन्दगी का रुआब
कम्बख़्त रोना भी चाहें ग़र रोया ना जाए
__अजय “अग्यार
आँखों में हैं नींदें मग़र पलकों पर हैं ख़्वाब
कम्बख़्त सोना भी चाहें ग़र सोया ना जाए
ये कैसा चला हम पर ज़िन्दगी का रुआब
कम्बख़्त रोना भी चाहें ग़र रोया ना जाए
__अजय “अग्यार