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29 Aug 2020 · 1 min read

मुक्तक । जीना तो था

(१) हम जमाने में रहकर
इसका जाए का ले रहे हैं।
कभी कड़वा कभी मीठा
रस पी रहे हैं
जीना तो दोनों परिस्थितियों में था यारो
इसलिए हंसते मुस्कुराते जी रहे हैं।।
(२) मछली तड़प रही थी
उसके सरोवर में नीर कम था ।
किनारे ही खड़ा सागर झूम रहा था
क्योंकि
उसकी लहरों में बहुत दम था ।।
“राजेश व्यास अनुनय”

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 617 Views
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