मुक्तक… हंसगति छन्द
मुक्तक… छंद हंसगति
मिले हार या जीत, नहीं कुछ जानूँ।
जग में सच्चा मीत, तुम्हें ही मानूँ।
जब प्रभु करूँ पुकार, विनय सुन लेना।
देकर तनिक दुलार, कष्ट हर लेना।
पाया तुम सा मीत, नहीं अग-जग में।
तुमको ध्याकर जीत, मिले पल भर में।
छोड़ा जग ने साथ, घिरे तम-घेरे।
ध्याऊँ तुम्हें हे नाथ, हरो गम मेरे।
छूटे माया-मोह, करो कुछ ऐसा।
बढ़े लोभ भी संग, बढ़े जब पैसा।
रहे न मन में स्वार्थ, बना दो ऐसा।
मिले मुझे भी धैर्य, तुम्हारे जैसा।
कल था मालामाल, भाग्य तो देखो।
पड़ा आज बेहाल, हाल तो देखो।
कब क्या हों ग्रह-चाल, नियति के लेखे।
बिगड़ा जग का हाल, हमारे देखे।
भर-भर रोए नैन, चुए परनारे।
नींद बिना बेचैन, हुए रतनारे।
खोजूँ कहाँ सुकून, कहूँ क्या किससे।
अपने ही जब बात, करें ना मुझसे।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)