*मुक्तक* वो ज़िंदगी ही क्या ?
वो ज़िंदगी ही क्या जो लहरों के साथ बह जाए !
बात तो तब है लहरों के विपरीत चलके दिखाएं !!
वो जीना भी कोई जीना जैसा मिले जी लिया जाए !
जीना तो तब है पत्थर का सीना चिर के उग जाएं !!
बने बनाए रास्तों पर चलकर सफलता पाई तो क्या !
मजा तो तब है सफलता के रास्ते ख़ुद बनाए जाएं !!