मुक्तक — रोग यह प्रेम का कैसा?
रहूं बेचैन, मिले न चैन,
लड़े हैं जब से यह नैना।
कटे न दिन ,सजन के बिन,
जगाए मुझको तो यह रैना।।
रोग यह प्रेम का कैसा, होता क्या सब को ही ऐसा।
उत्तर पास तुम्हारे हो, यारो मुझको जतला देना।।
राजेश व्यास अनुनय
रहूं बेचैन, मिले न चैन,
लड़े हैं जब से यह नैना।
कटे न दिन ,सजन के बिन,
जगाए मुझको तो यह रैना।।
रोग यह प्रेम का कैसा, होता क्या सब को ही ऐसा।
उत्तर पास तुम्हारे हो, यारो मुझको जतला देना।।
राजेश व्यास अनुनय