मुक्तक प्यार
*********** मुक्तक (प्यार) ************
1
दिल की बात जो समझे उसे दिलदार कहते है
पीठ पर खंजर घोंपे उसे गद्दार कहते हैं
जमाने की दीवारों से है जो टकरा जाए
शमां के उस परवाने को सच्चा प्यार कहते हैं
2
आँखें चार हों जाए समझिए प्यार हो जाए
जब खुद से ज्यादा उसी पर ऐतबार हो जाए
जब छोटी छोटी बातों पर तकरार हो जाए
जानो प्रेम का तीर दिल के है पार हो जाए
3
दिन में जागती आँखों से ख्वाब देखता जाए
जब रात को भी नैनों में नींद नजर ना आए
अकेले में अपने आप से बड़बड़ाने लगे
सुर्ख नयनों में बेइंतिहा है इश्क छा जाए
4
सुनसान गलियों में जब है चक्कर काटने लगे
बिन बात के कोई मंद मंद मुस्कराने लगे
कोई बेगाना सा साया दिल को भाने लगे
सुखविंद्र प्रेमजाल में समझो फंस जाने लगे
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)