है कहां नौकरी ये अजब राज है
मुक्तक
ना हमें काम है ना तुम्हें काज है ,
है कहाँ नौकरी ये अजब राज है ।
राज की बात है राज जिसने किया ,
दांव पर दांव दे , नाम का ताज है (1)
खेलते खून से राज वाले यहाँ ,
झेलते फूल से भाव वाले यहाँ ।
हास्य –परिहास है बेईमानी मगर
तौलते नोट को वोट बाले यहाँ । (2)
बाँट कर राज कर नीतियाँ हैं जहां ,
फल रही भांति की जातियाँ है वहाँ ।
अवतरित देव का कोई सानी नहीं ,
लोक कल्याण की रीतियाँ है यहाँ । (3)
राज औ भेद है ढ़ोल ही ढ़ोल है,
खेद है काम में झोल ही झोल है।
ला बने सब यहाँ मानते पर कहाँ ,
छेद है साज में पोल ही पोल है । (4)
राज दरबार की है चली आँधियाँ ,
आज दर हैं बिके हैं नई व्याधियाँ ।
काम कुछ भी नहीं रोटियाँ भी छिनी ,
वाद –परिवाद से मन गया चौंधियाँ । (5)
‘डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ‘, सीतापुर ।