मुक्तक — खिली थी कलियां —
खिली थी कलियां बगिया में ,थे भेाैरे जिनपे मंडराए।
कोई झूमे कोई गाए,प्रीत के गीत लहराए।।
पसारे पंख थे अपने,हो रहे पूरे थे सपने।
विहंगम था नजारा वह,प्रेम रस मिलके बरसाए।।
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राजेश व्यास अनुनय