“मुक्तक”- ( कैसा रुख़ यह लेता है )
“मुक्तक”- ( कैसा रुख़ यह लेता है )
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कोरोना का तांडव फिर से बढ़ता जा रहा !
संक्रमितों व मृतकों का ग्राफ चढ़ता जा रहा!
पता नहीं इस बार कैसा रुख़ यह लेता है….
सदा यही सोच-सोच कर मैं डरता जा रहा !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 10 सितंबर, 2021.
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