“मुक्तक” : ( कड़ाके की ठंड )
“मुक्तक” : ( कड़ाके की ठंड )
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पर रही है इस सर्दी में कड़ाके की ठंड ।
हल्की रजाई से ना हो रही इसकी अंत ।
दिन में नभ में सूर्य देव भी दिखाई पड़े ;
रजनी की गोद में छुप ये मचाए आतंक।।
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 22/01/2022.
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