“मुक्तक”- ( अरमां जग रही…. )
“मुक्तक”- ( अरमां जग रही…. )
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अरमां जग रही उनसे मिलने को !
चाहत जाग रही सुंदर दिखने को !
पर चाहकर भी करूॅं तो क्या करूॅं,
ये उम्र न रह गई ये सब करने को !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 22-07-2021.
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