मुकेश का दीवाने
बात सन 1992 की है। उन दिनों मेरे बीए के एग्जाम चल रहे थे। राजनैतिक विज्ञान का पेपर अच्छा हुआ था। डीटीसी की मुद्रिका बस पकड़ के मैं माल रोड़ से श्री निवास पुरी अपने घर जा रहा था। उन दिनों पिताश्री को सरकारी मकान मिला था। वाक्या बड़ा दिलचस्प है। गायक मुकेश का एक 45 साल का अधेड़ उम्र दीवाना मुझे मेरे कालेज के दिनों में इसी डीटीसी बस में मिला था। वह मेरे बग़ल में पीछे ही खड़ा था और मुकेश जी का गीत गुनगुनाना रहा था। मैं उसकी तरफ़ देखकर मुस्कुरा दिया। उसके बाद उसने मुकेश जी का दूसरा गीत गाना आरम्भ कर दिया। फिर तीसरा।
”आप मुकेश जी के बड़े फैन मालूम होते हैं!” उसकी दीवानगी देखकर मैंने पूछा।
उसने जेब से एक डायरी निकाली, जिस पर मुकेश जी के आटोग्राफ थे। मैं खुशी से उछल पड़ा। अगल-बगल में खड़े और लोगों ने भी वो डायरी देखी तो फूले नहीं समाये। इसके बाद तो ऊंची आवाज़ में वह दिल खोल कर पूरे सफ़र में मुकेश के अनेकों गीत एक के बाद एक गाता रहा। हम सब आत्ममुग्ध हो उसे सुनते रहे। लगा आँखों के आगे मुकेश जी स्वयं जीवित हो गये हों। लगभग 45 मिनट का सफ़र था, पता ही नहीं चला, कब कट गया। मैंने उससे मेरा बस स्टाफ आने पर उतरने की अनुमति मांगी। बस से उतरने के बाद घर पहुचने तक उसकी सुरीली आवाज़ मेरे कानों में गूंजती रही।
भाई सुनील वर्मा जी ने मुझे मुकेश जी की सौवीं जयन्ती पर सुअवसर पर मुकेश जी से जुड़ी एक घटना वहाटस एप्प पर सांझा की है। सुनील जी खुद भी मुकेश जी के बहुत बड़े फैन हैं। “रुपहली यादें उस दौर की” फेसबुक वेबसाइट से एक घटना यहाँ दे रहा हूँ। जिससे आपको पता चलेगा मुकेश जी का स्वाभाव कैसा था। उनका हृदय कितना विशाल था और उनकी अपने चाहने वालों के प्रति दीवानगी किस हद तक थी।
घटना कुछ यूँ है। ये बात सन 1963 की है। गायक मुकेश साहब साईं के दर्शनों के लिए शिरडी गए हुए थे और अक्सर जाते थे। अबकी बार जब वह शिरडी पहुंचे तो मंदिर जाने के लिए रिक्शा कर लिया। रास्ते में रिक्शा चलाने वाला एक गाना गुनगुना रहा था, और यह गाना मुकेश जी का ही था, वह थोड़ी देर चुपचाप सुनते रहे और जब रिक्शा वाले ने गाना गा लिया तो कहा यार किसी और अच्छे गायक के गाने सुनाओ यह क्या बेकार के गाने गाने में लगे हुए हो ,अब जो हुआ उसकी उम्मीद मुकेश जी को नहीं थी मुकेश जी को, मुकेश जी की बात सुनकर गाड़ी वाले ने जोर के ब्रेक लगाकर कहा, अगर आपको यह गायक पसंद नहीं है तो भाई साहब उतर जाइए मेरी रिक्शा से मैं तो इसी बंदे के गाने गाता हूं गुनगुनाता हूं, आपको अगर तकलीफ हो तो दूसरा रिक्शा ले लो आपके लिए मैं अपनी पसंद की आवाज बदल नहीं सकता हूं।। और भड़क गया समझाने की कोशिश की और पूछा कि ये गाने हैं किसके ,रिक्शा वाले ने कहा यह गाने मुकेश के हैं, मुकेश जी ने अपनी जिंदगी में बड़े फैन देखे थे लेकिन ऐसा फैन नहीं देखा था उन्होंने कहा कि मुझे दर्शन करा कर वापस छोड़ दो मैं पैसे ज्यादा दे दूंगा और आप मुकेश जी के ही गाने सुनाएं ।। वह मान गया वापस आते समय बातों ही बातों में उन्होंने पूछा तुम्हारे परिवार में कौन-कौन है तब वह बोला मेरे दो बच्चे हैं एक लड़का एक लड़की है लड़की मंदिर के बाहर साईं के लिए अगरबत्ती बेचती है लड़का है लेकिन मेहनत मजदूरी करता है इतना पैसे नहीं है जिससे कि मैं अपने बेटी बेटे को स्कूल भेजपाऊं मुकेश जी ने उस रिक्शेवाले से कहा बहुत बड़े फैन हो तुम मुकेश के, चलो मैं तुम्हें मुकेश से मिलवा देता हूं मैं मुकेश को जानता हूं । रिक्शावाला बोला बाबू क्यों गरीब का मजाक उड़ा रहे हो मेरे पास इतने पैसे कहां है कि मैं मुंबई जाऊं और मुकेश जी मुझसे क्यों मिलेंगे ? मुकेश ने कहा तू इसकी चिंता छोड़ मुकेश मेरा बहुत अच्छा दोस्त है और मुकेश जी उस रिक्शेवाले को अपने पैसे से मुंबई ले आए और लेकर अपने घर पहुंच गए, घर पर बैठे नितिन से कहा कि इनको अटेंड करो मैं अभी नहा धोकर आता हूं । बड़ी इज्जत के साथ रिक्शे वाले को ड्राइंग रूम में बैठाया गया ,उसी हाल में मुकेश जी की एक तस्वीर लगी हुई थी तस्वीर के नीचे लिखा था मुकेश चंद्र माथुर इस फोटो को देखकर वह बोला नितिन से कि यह तो इन साहब की तस्वीर है क्या मेरा ये साहब का नाम भी मुकेश है नितिन ने जवाब दिया हां फिर उसने पूछा कि यह क्या करते हैं नितिन ने कहा फिल्मों में गाना गाते हैं यह वही मुकेश है । उसे यकीन ही नहीं हुआ कि जिस इंसान के दर्शन पाने के लिए मैं इतनी दूर आया हूं वो इंसान पिछले 2 दिन से मेरे साथ था मेरे करीब ,और जब मुकेश जी वापस आए तो वह उनके चरणों में लेट गया मुकेश जी ने कहा तुम्हारी जगह चरणों में नहीं है दिल में है मेरे गले लग जाओ। वो रिक्शावाला 2 दिन तक मुंबई में रहा मुकेश जी ने उसे रिक्शा खरीदने के पैसे दिए और हर महीने उसके बच्चों की पढ़ाई का पैसा देने का वादा करते हुए उसे वापस शिर्डी भेजा ।।मुकेश जी ने बहुत सारे लोगों के लिए बहुत बड़े-बड़े काम किए।।