मुक़ाम क्या और रास्ता क्या है,
मुक़ाम क्या और रास्ता क्या है,
कुछ भी तो नहीं पता ।
कहाँ ठहरूँ, कहाँ से चलूँ
ऐ जिंदगी ! कुछ तो बता ।
कुछ भी जीत लेने पर आख़िर खुश होना क्या ?
और किसी चीज़ के खो जाने पर आख़िर रोना क्या ?
इस प्रश्न का उत्तर जाने बिना,
लगातार प्रश्न बदलते जा रहे हैं हम ।
जिंदगी की इस भाग-दौड़ में ,
लगातार चलते जा रहे हैं हम ।।
— सूर्या